इच्छाशक्ति
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अंधेरो की गुलामी से नही आजाद हो पाया ,
नही कुछ पल नसीबो में मेरे खद्योत ही आया ,
समझकर जिंदगी के इन तजुर्बेमय इशारो को,
जिया मन भर के समय जो हक में मेरे आया ।
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नही ख्वाहिश है छू लू मैं उछलकर चांद तारो को,
पहन लू मैं न कभी इन विजयी पुष्पहारो को।
जिस मिट्टी की काबिलियत काबिल बना हूं मैं ,
उठाकर फेंक दूं दामन से उनके बिखरे खारो को ।
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बिछाकर राह में कांटे सताने की कोशिशें की ,
उसी पथ पर मुझे उसने चलाने की कोशिशें की,
चट्टान बन के रोक लिया उन्ही के काफिले को मैं ,
बहुत शरमायादारो ने हटाने की कोशिशें की ।
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फिजाओं में है बिखरे हर तरफ रंगीनियाँ देखो,
इस मिट्टी की मेरे मुल्क की मेहरबानियां देखो,
शहर में सज रहा उत्सव फूलों का सेज रातो में,
कहीं सुख चैन नही है लोगो की परेशानियां देखो ।
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इन पर्वतों को भी मेरी औकात बता दो ,
ये घमण्ड गर करे तो इसे मेरा पता दो ,
कहीं मैं रूबरू हो जाऊं न मन्नत ये मांग ले ,
मांझी दशरथ का हूं मैं 'अवतार 'बता दो ।
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गुंजाइशो के बीच मैंने सफर को पूरा किया ,
न लौटा बीच राह से न काम अधूरा किया ,
टकराने को आते हुए सभी शिलापुंज को ,
अपनी कठिन संकल्प से पीसकर चुरा किया ।
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मेहनत की आग से तपा और तपता रहा मैं,
आये हुए सब वेदना को सहता रहा मै।
जब जब भी पड़ा मार समय रूपी लोहार का ,
तब निखर के आया और खरा बनता रहा मैं ।
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निकल रही धुंआ इन चिमनियों से दम से मेरे,
अजंता एलोरा की गुफा का मैं हूँ चतुर चितेरे,
बागों को मैंने सींचा मेहनत की जल से अपने,
जो खूब महक रही है हर शाम और सबेरे ।
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जारी है ...