शनिवार, 29 मई 2021

अहंकार

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                       अहंकार
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अतिभाग्य मिला यह जीवन है ,
इसे मद लोभ में यूं न बिताओ ,
धर सुकृति सुकर्म के आभूषण ,
यह दुर्लभ मानव जीवन सजाओ ।
शुचिता ,सौहार्द्र भरा जीवन ,
नही अहंकार की  हो साया ,
अहंकार मत करिए कभी भी,
 अहंकार नही रह पाया ।।

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अहंकार किया जिसने भी यहाँ,
नही अधिक दिनों तक छत्र रहा,
मिटा उनका अतिशीघ्र  विभव,
अरु पतन का फिर शुरू सत्र रहा।
इसलिए विचार करो मानव,
है अहंकार में काल समाया,
अहंकार मत करिए कभी भी,
 अहंकार नही रह पाया ।।

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मद में धन बल परिवारन के,
करी कपट सिय हर लायो दशानन,
मारीच करे बहुभाँती प्रबोध ,
तनिक भी बात सुन्यो नही कानन।
निज मद में उसे खबर नही यह,
सीय के रूप में काल है आया,
अहंकार मत करिए कभी भी,
 अहंकार नही रह पाया ।।

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अति उत्तम कुल में जन्म लिया,
निज भुज तपबल से सुजस है पायो,
अभिमान अधीन फिर होकर के,
अनीत कियो जननी हर लायो।
कहै हनुमान सुन विनती राजन,
अभिमान तजो ,भजो रघुराया,
अहंकार मत करिए कभी भी,
 अहंकार नही रह पाया ।।

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नही नर नाग ना सुर असुर,
न बाहर भीतर मृत्यु हमारो,
दिवस रजनी नही अस्त्र शस्त्र,
फिर कौन भला हमे रन में मारो।
अति दारुन अत्याचार को देख,
नृसिंह बन अंत है खम्भ में आया,
अहंकार मत करिए कभी भी,
 अहंकार नही रह पाया।।

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काम को जीत लिया जब नारद,
अहिमती मन में उसकी समाई,
चतुरानन ,शिव,बैकुंठपति से,
वह अपनी सारी कीर्ति सुनाई।
माया के राजस्वयम्बर में फिर,
अपना सारा यश है  गंवाया,
अहंकार मत करिए कभी भी,
 अहंकार नही रह पाया ।।

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मेरी प्रचण्ड वेग को थाम सके,
अवनी में किसी की शक्ति नही,
जब जाऊँ धरा ब्रम्हलोक से तो,
मिट जाए न धरा की हस्ती कहीं।
ब्रम्हकामण्डल से निकली अरु,
शिव जटा में खोकर मार्ग भुलाया,
अहंकार मत करिए कभी भी,
 अहंकार नही रह पाया ।।

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जीवनपथ पर यह ध्यान रहे,
सूर्य उगा है तो वह डूबा भी है,
सृजन कर नव कर्तव्यों का ,
प्रतिपल मौसम खुशनुमा भी है।
अहंकार है पावक  के समान,
नही शेष रहा जो इसे अपनाया,
अहंकार मत करिए कभी भी,
 अहंकार नही रह पाया ।।

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बुधवार, 26 मई 2021

समय

रचना -कुर्मी रामावतार चन्द्राकर
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समय बहुत अनमोल रे मनवा,
हर घड़ी का सम्मान करें हम ,
समय की धार में बह बह जाए,
नही इनका तिरस्कार करे हम।
कितने भी विपरीत हो घड़ियां,
नही तनिक दुखों का भान रहे,
हर एक समय का आदर करना ,
हर एक घड़ी का ध्यान रहे ।।

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समय अश्व पर हो सवार जब,
मंजिल हमको तब ही मिलेगा,
प्रतिकूलता के घोर तिमिर में,
नित ही आस का दीप जलेगा।
मानवता के पृष्ठभूमि पर ,
नही कर्तव्यों का गुमान रहे,
हर एक समय का आदर करना ,
हर एक घड़ी का ध्यान रहे ।।

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समय के मूल्यों पर निर्धारित,
जीवन को तुम्ह करके देखो,
समय की बलि वेदी पर हर पल,
खुद को अर्पण करके देखो ।
समय के ड्योढ़ी पर जीवन के,
सुख - दुख तब मेहमान रहे,
हर एक समय का आदर करना ,
हर एक घड़ी का ध्यान रहे ।।

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रोज मुंडेर पे रवि की किरणें,
समय पे दस्तक दे जाता है,
सोये हुए हतभाग्य जनों के,
उर में प्रकाश वह भर जाता है।
पोखर में यह खिले कमल दल,
हम सबसे तब यह "बान "कहे ,
हर एक समय का आदर करना ,
हर एक घड़ी का ध्यान रहे ।।

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समय समय पर सबने अपना ,
दुनियां में है हुकुम चलाया,
कंस हो रावण हो या सिकन्दर,
समय की मार से बच नही पाया ।
समय के पदचिन्हों पर चलकर,
हमे नैतिकता का अभिमान रहे,
हर एक समय का आदर करना ,
हर एक घड़ी का ध्यान रहे ।।

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कठिन समय हो या अनुकूलता,
हे पथिक पथ से विचलित न होना,
समय के नियमो का पालन कर,
सफलता का हर शिखर है छूना ।
नित  हो धर्ममय जीवन अपना,
नित अधरों पर मुस्कान रहे,
हर एक समय का आदर करना ,
हर एक घड़ी का ध्यान रहे ।।
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(बान = बात ,सन्देश)

नई आस

                 नई आस                कल्पना साकार होता दिख रहा है, आसमाँ फिर साफ होता दिख रहा है।। छाई थी कुछ काल से जो कालिमा, आज फिर से ध...