गुरुवार, 22 जुलाई 2021

जीवन का अधिकार

तेरी तरह सब जीना चाहे
सबको जीवन का अधिकार

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

क्यों मनमौजी बना है फिरता
मूक जीवन क्यों छेड़ते हो तुम
जो तेरे घट माँझ बिराजत
सबके भीतर देखो ना  तुम
काहे ना अपनाता  मानव
सम्यक जीवन का व्यवहार
तेरी तरह सब....................

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

दम्भ कपट अरु द्वेष ईर्ष्या
शत्रु है ये सरल जीवन का
क्रोध अनल अरु लालच यम सम
मोह  बन्धन है बिरागी मन का
त्याग विषमता के मारग को
प्रेम  भूषित पथ करो स्वीकार
तेरी तरह सब .............................

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

देखो आह्लादित अंडज को
खुले गगन में उड़ उड़ जाए
गैरो के आशियाने पर ये 
नही कभी है हक ये जताए
जितना हक तुम्हे दिया विधि ने
करो उन्हें  तुम्ह अंगीकार
तेरी तरह सब ...................

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

कोकिल कुंजे ज्यों बसन्त में
झर झर बहती सरिता धारा
कलरव करती ये बिहंग दल
मन को भाये उपवन प्यारा
देती है सन्देश मनुज को
धारण कर इनका आचार 
तेरी तरह सब ......................

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

सूखा हुआ मन की है तलैया
भावो से उसको तुम भर दो
मूर्छित मन को सांसे देकर
नस नस में तुम सांसे भर दो
तेरे सुरभित सांस से महके
पतझड़ भी होकर गुलजार 
तेरी तरह सब......................

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

आहट पाकर सज सज जाए
तेरे ही जलवे से महफ़िल
बन पर्वत अरु जल थल मन को
चाल चलन से ना हो मुश्किल
जाने से तेरे चले जाएं और
और आने से हो त्यौहार 
तेरी तरह सब ........................

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

 तेरे खुद की धड़कन को भी
स्वर देने वाला कोई और है
कर्म,कर्मफल,जन्म मरण को
निर्धारिण करता कोई और हैं
आती जाती ज्यों घड़ियों पर
रहता किसी का नही अधिकार
तेरी तरह सब .........................

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
मूक जीवन - पेड़ पौधे आदि प्रकृति
घट माँझ - हृदय बीच
अंडज - पंछी
तलैया - छोटा तालाब








रविवार, 11 जुलाई 2021

ओझल




●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

मेरे जीवन से वो क्या ओझल हुए ,
महफिले लूट गयी कारवाँ न रहा  ।
ऐसी बरसी निगाहों से चिंगारियां ,
जल गए सारे खत दास्तां ना रहा ।
सजाना था मुझको ऐ जश्ने बहार,
मन मेरा पर न जाने क्यूं गुमसुम हुआ ।
जिसकी आगोश में पल रहे ख्वाब थे ,
प्रेमोदधि वो जाने  कहाँ गुम हुआ ।।

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

देखे सतरँगी अरमान सँजोये थे संग ,
मिलके जिसके नयन से नयन ये मेरा ।
कभी जगमग थी अपनी वफ़ा के दीये ,
शाम नमकीन थी तो मीठा सा सवेरा ।
उसके होने से खुशियां कभी कम न थी ,
उसके खोने से जन्नत जहन्नुम हुआ ।
जिसकी आगोश में पल रहे ख्वाब थे ,
प्रेमोदधि वो जाने  कहाँ गुम हुआ ।।

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

प्रेम कश्ती भंवर बीच डूब ना गयी ,
आसरा मुझे तिनके का तब तक रहा ।
लोग पूछते हैं तूफां अधिक थी या कम ,
कारवाँ लूट जाने का कब तक रहा ।
मैं बताऊंगा अपनी व्यथा सब्र कर ,
दास्तां सुन के चन्दा भी कुमकुम हुआ ।
जिसकी आगोश में पल रहे ख्वाब थे ,
प्रेमोदधि वो जाने  कहाँ गुम हुआ ।।

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

कभी "अवतार" जिसकी अनुज्ञा से मैं ,
उस प्रणय के निकेतन के दहलीज पर ।
रख दिये थे कदम आचमन के लिए ,
था भरोसा मुझे उसकी ताबीज पर ।
संग उसके मेरे संग था भाग्य भी ,
फिर अचानक से जीवन ये महरूम हुआ ।
जिसकी आगोश में पल रहे ख्वाब थे ,
प्रेमोदधि वो जाने  कहाँ गुम हुआ ।।

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

दीप्ति को जिसकी पाकर थी रोशन दीये ,
सदा मिलता रहा कभी ना कुछ गया ।
अब हवा भी सुगन्धित ना मध्यम रहा ,
मेरे जीवन की जलसा से लौ बुझ गया ।
कभी खुशियों  से दिल ये सराबोर था ,
अब ये शीशे सा टूटकर के  मासूम हुआ ।
जिसकी आगोश में पल रहे ख्वाब थे ,
प्रेमोदधि वो जाने  कहाँ गुम हुआ ।।

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

 जिसकी उपमा में  हमने कसीदे पढ़े ,
बाग, फूलों, बहारों को समझा ना कुछ ।
उड़ते जुल्फों को मेघों से कम ना कहा ,
हंसी सूरत के आगे थी चन्दा भी तुच्छ ।
उनकी आंखों को मीठा समंदर कहा ,
और ये  बूंदे भी पायल का रुमझुम हुआ ।
जिसकी आगोश में पल रहे ख्वाब थे ,
प्रेमोदधि वो जाने  कहाँ गुम हुआ ।।

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

वो मोहब्बत की मल्लिका कहां खो गयी ,
मैं अकिंचन बना यूँ फिरूँ दर-ब-दर ।
देखो सावन भी आकर बरसने लगे ,
आ भी जाओ न तड़पाओ ओ बेखबर ।
धरा भी प्रफुल्लित हो अब सज रही ,
मिलन हेतु अम्बर में भी हुम हुआ ।
जिसकी आगोश में पल रहे ख्वाब थे ,
प्रेमोदधि वो जाने  कहाँ गुम हुआ ।।

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

था ये वादा की "ओझल "न होंगे कभी ,
चाहे नदियां की धारा भी विपरीत बहे ।
अपनी चाहत से गुलशन उठेगा महक ,
सिर्फ आहट से अब नवसृजन हो रहे ।
जिसमे पल्लव न फूल और कभी फल लगे ,
ऐसे पतझड़ में  अब वो कल्पद्रुम हुआ ।
जिसकी आगोश में पल रहे ख्वाब थे ,
प्रेमोदधि वो जाने  कहाँ गुम हुआ ।।

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

नई आस

                 नई आस                कल्पना साकार होता दिख रहा है, आसमाँ फिर साफ होता दिख रहा है।। छाई थी कुछ काल से जो कालिमा, आज फिर से ध...