बुधवार, 14 जून 2023

आयो बसंत

नव अरुणिमा की रश्मि दिनकर 
मंगलदीप जलावत आवत 
तिमिरांगण के समरभूमि
निज शौर्य प्रभा बिखरावत आवत
हेतु बने नव आस दिखावत
धवल ध्वजा फहरावत आवत
भरी भरी थाल ले द्वार पे सखिया
बन्दनवार सजावत आवत
हो प्रसन्न ऋतुराज बहुविधि  
त्रिविध बयार बहावत आवत
कण्ठ पे मिश्री घोल कोयलिया
मंगल शबद सुनावत आवत 
उपवन की शोभा को बढ़ावत
नवकलियाँ दल खिल खिल जावत


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

नई आस

                 नई आस                कल्पना साकार होता दिख रहा है, आसमाँ फिर साफ होता दिख रहा है।। छाई थी कुछ काल से जो कालिमा, आज फिर से ध...